एक योद्धा जिसकी तलवार मुगलों के खून की प्यासी हो गयी थी, जिसने बीमार होने के बाद भी अपने साम्राज्य को बचाने के लिए लड़ाई लड़ी, एक योद्धा जो कामाख्या देवी का जैकारा लगाते हुए मुगलों के सामने पर्वत बनके खड़ा हो गया
कहानी शुरू होती है 1660 से जब औरंगजेब मुग़ल शासक बना, शासन में आने के बाद औरंगजेब मीर जुमला 2nd को बंगाल का सूबेदार बनता है, और 1662 में मीर जुमला 2nd को असम पर कब्ज़ा करने के लिए बोलता है ताकि असम को मुग़ल साम्राज्य में मिलाया जा सके, आज के असम पर उस समय अहोम साम्राज्य का राज था, औरंगजेब के एक आदेश पर मीर जुमला असम पर आक्रमण कर देता है और अहोम साम्राज्य के कई शहरों पर कब्ज़ा करते हुए, अहोम की राजधानी गढ़गांव पहुँच जाता है, और राजधानी पर कब्ज़ा कर लेता है. जैसे ही अहोम राजा जयाध्वज सिंघा को इसके बारे में पता चलता है, अहोम राजा अपनी सेना के साथ नज़दीक के जंगलों में छिप जाता है, अब मीर जुमला गढ़गांव पहुँच तो गया था लेकिन मीरजुमला को गढ़गांव के बारे में ज्यादा पता नहीं था, और इसी बीच मानसून ने भी दस्तक दे दी थी भारी बारिश की वजह से नदी नाले उफान पर थे, आने जाने के रस्ते बंद हो चुके थे, और मीर जुमला की सेना गढ़गांव में फंस चुकी थी, मौके की नज़ाकत को देखते हुए अहोम राज्य के कमांडर, अतानबुरहागोहैं गोरिल्ला वारफेयर टेक्नीके से मीर जुमला के सेना को बोहोत नुक्सान पहुंचते हैं. और मीर जुमला की सेना आधे से भी कम हो गयी थी, मीर जुमला अब गढ़गांव से भागने की फ़िराक में था, लेकिन इसी बीच अहोम राज्य के राजा जयाध्वज सिंघा अपनी हार से बहुत परेशान थे, जिसकी वजह से राजा जयाध्वज सिंघा मीर जुमला के साथ एक संधि करने के लिए मान जाते हैं, और जयाध्वज सिंघा और मीर जुमला के बीच होती है
The Treaty of Ghilajharighat
लेकिन इस ट्रीटी के नियम बोहोत सख्त थे, पहला की बहेरी नदी जिस आज कमिंग नदी के नाम से जाना जाता है, उससे पश्चिम का राज्य मुग़ल साम्राज्य में मिल जाएगा, दूसरा की 20,000 तोला sona और एक लाख बीस हज़ार तोला चाँदी और चालीस हाथी अहोम राजा को मुग़ल साम्राज्य को देने होंगे, और तीन लाख तोला चाँदी और नब्बे हाथी बारह महीने में और देने होंगे और सालाना बारह हाथी और देने होंगे, यहां तक तो ठीक था लेकिन इसमें सबसे लज्जा की बात थी की अहोम राजा जयाध्वज सिंघा को अपनी एक बेटी मुग़ल राजा के हरम के लिए भेजनी होगी,
अपने राज्य को बचाने के लिए जयाध्वज सिंघा इन शर्तों को मान तो जाता है, लेकिन हार के शर्म के तले ही मर जाता है, मरते समय जयाध्वज सिंघा अपने भाई चक्रध्वज सिंघा को बोलता है की “भाई अगर हो सके तो इस हार के भाले को हमारे राज्य के सीने से निकाल देना” चक्रध्वज सिंघा एक बोहोत ही समझदार और साहसी राजा था, चक्रध्वज सिंघा ने राजा बनते ही अपनी सेना में बोहोत से बदलाव किये, अपनी पडोसी रियासतों जैसे जयंतिया, और काचरिया रियासतों से मित्रता बढ़ाई, खाने पीने की चीज़ों के उत्पादन में भी बढ़ोतरी की साथ ही शास्त्रों में भी बढ़ोतरी की, सेना में भी बोहोत से बदलाव किये गए जिसमे सेना को अनुशासित किया गया, दस सैनिकों को लीड करने वाला डेगा कहलाता था, 100 सैनिकों को लीड करने वाला सैंनया, एक हज़ार के लीडर को हजारका, तीन हज़ार के लीडर को राजखोवा, 6 हज़ार के लीडर को फुकन और जो इन सबको लीड करता था वो होता था बोर्फुकान, और राजा चक्रध्वज ने लाचित को अपना बोर्फुकान बनाया,
लाचित की पैदाइश 24 नवंबर 1622 की थी और इससे पहले इसके पिता भी अहोम राजा के मुख्य सेना अध्यक्ष थे, लाचित को अपनी आर्मी का बोर्फुकान बनाने के बाद राजा चक्रध्वज सिंघा मुगलों की ट्रीटी को मानने से मना का देता है, और हाथी और चांदी देने से भी मना कर देता है, लेकिन मुगलों के जबरदस्ती करने पर 1667 में लाचित और अतानबुरहागोंहैं के साथ अहोम सेना को लेकर गुहाटी के लिए निकलता है, तब तक मुग़ल साम्राज्य ने अहोम साम्राज्य से जीती हुई जमीं की राजधानी गुहाटी बनायीं हुई थी, और उनका प्रमुख किला था ईटाकुली, लाचित धीर धीरे सारे शहरों को जीतते हुए नवंबर 1667 को गुहाटी ईटा कुली पहुँचता हैं, लेकिन लाचित के पास सेना में घुड़सवार नहीं थे और बिना घुड़सवारों के किले पर कब्ज़ा करना आसान नहीं था, क्यूंकि किले के मुहाने पर तोपें लगी हुई थी, इसलिए लाचित अब एक नया प्लान बनता है वो स्माइल सिद्द्की के नेतृत्व में कुछ लोगो को किले पर रात के अँधेरे में भेजता है, ये लोग रात को किले की दीवारें फांद कर किले के मुहाने पर रखी तोपों में पानी डाल देते हैं, जिससे तोपें ख़राब हो जाती है, और अगली सुबह अहोम सेना किले पर आक्रमण कर देती है, बिना तोपों के मुग़ल सेना किले की रक्षा कर ही नहीं पति और अहोम किले पर कब्ज़ा कर लेते हैं, मुगलों को अपनी जान बचा कर भागना पड़ता है, और अहोम साम्राज्य अपनी पुरानी सीमाओं तक पहुँच जाता है,
औरंगजेब को जब इस हार का पता चलता है तो वो सेना से पूछता है की ये हार कैसे हुई, तो एक जवान के मुख से निकलता है की “एक शख्स के कारण, लेकिन ये पता नहीं की वो इंसान है या आदमजात लेकिन कुछ लोगों ने हींगडांग को देखा है” औरंगजेब सैनिक से पूछता है की “ये हींगडांग क्या है” तो सैनिक जवाब देता है ” लाचित की तलवार” ये सुनते ही औरंगजेब गुस्से में बोलता है की ” अगर ये आदमजात है तो इसे मरना होगा” और अपने सबसे पसंदीदा कश्मीर के मनसबदार जयपुर के आमेर के राजा राजा राम सिंह को गुहाटी जाने का आदेश देता है और अहोम राज्य को पूरी तरह तहस नहस करने का आदेश देता है, औरंजेब की नज़रों में अहोम राज्य के लिए इतना गुस्सा था की राजा राम सिंह के नेतृत्व में चार हज़ार घुड़सवार, 1500 अहदी जो मुग़ल सेना की सबसे खतरनाक टुकड़ी होती थी, जिसे राजा खुद चुनता था, और ट्रेनिंग भी देता था बल्कि इन्हे बाकियों से जयादा सैलरी भी दी जाती थी, इनके आलावा पांच हज़ार बंदूकची, भी दिए जाते हैं।रस्ते में तीस हज़ार पैदल सैनिक, 21 राजपूती ठाकुर और उनके सैनिक, 18000 और घुड़सवार, 15000 तीरंदाज़, एक हज़ार तोपें, और चालीस जहाज़ इस बेड़े में और जोड़े जाते हैं, मुग़ल सेना को अहोम राजय तक पहुँचने में 1 साल का समय लगा और इस बीच लाचित के जासूस मुग़ल सेना पर नज़र बनाये हुए थे, और जैसे ही लाचित को इस सेना के बारे में पता चला एक बार तो वो हैरान हो गया, लेकिन फिर हिम्मत बांधते हुए वो एक स्ट्रॅटजी बनता है, इस बात का तो उसे भली भांति पता था की इतनी बड़ी सेना से वो खुले मैदान में नहीं जीत सकता, और मुगलों की इतनी बड़ी सेना का अगर कोई वीक पॉइंट है तो वो है नेवी, इसलिए लाचित एक नया प्लान बनता है, की अगर जमीनी रास्तों को बंद कर दिया जाए, तो मुग़ल आर्मी के पास बह्मपुत्र नदी से आने के सिवाए और कोई रास्ता नहीं बचेगा, ‘और लाचित गुहाटी की पहाड़ियों को चुनता है और गुहाटी की पहाड़ियों के दर्रो, नालों आने के सभी रास्तों में मिटटी भर देता है, और लाचित लड़ाई के लिए चुनता है सरायी घाट, क्यूंकि यहीं ब्रह्मपुत्र सबसे कम चौड़ी थी लगभग एक किलोमीटर चौड़ी, लाचित अपना हेडक्वाटर अंधारुबलि में बनता है जो कामाख्या और सुक्रेश्वर पहाड़ियों के बीच था, एक तरफ लाचित और दूसरी तरफ अतान बुढ़ागोहेन अपना कैंप लगता है, इधर मुग़ल सेना भी आगे बढ़ रही थी, और अप्रैल 1669 में मुग़ल सेना मनास जीतती है. और आगे बढ़ती है, जैसे ही मुग़ल सेना गुहाटी के पास पहुँचती है, देखति है की जमीनी सारे रस्ते बंद है, और सराईघाट पर अहोम राज्य का एक बड़ा बेड़ा रस्ते रोके हुए खड़ा है, इसलिए कुछ महीने तक जमीन पर ही दोनों सेनाओं में छोटी मोटी लड़ाईयां होती रहती हैं, अहोम के साथ दारों, जयंतिया नागा, दारलोंग की रानी की सेना भी इस लड़ाई में जुड़ जाती है, लेकिन इसी बीच मानसून आ जाता है, और थोड़े समय के लिए लड़ाई रुक जाती है, औरंगजेब इतने महीनो से चल रही लड़ाई को देख कर बंगाल के सूबेदार शाहिस्ता खान को बोलकर राम सिंह को और सेना भेजता है, पहाड़ों में लड़ाई चलती रहती है लेकिन दोनों पक्षों की कोई ख़ास जीत नहीं हो रही थी।
इससे परेशान होकर राम सिंह अहोम राजा को द्वंद्व के लिए पुकारता है, और कहता है की अगर वो हारता है तो वापिस चला जाएगा, राम सिंह एक राजपूत था और एक बड़ा योद्धा भी था, लेकिन अहूम राजा बड़ी ही चालाकी से उसे जवाब भेजता है की वो राजा के भेजे गए किसी नौकर से नहीं लड़ेगा, ये सुनकर राम सिंह को गुस्सा तो बोहोत आता है लेकिन समझदारी बरतते हुए वो अहोम राजा को एक और मौका देता है की सरेंडर केर दो और पुराणी ट्रिटि के टेरेम को फिर से ऑफर करता है, और इस तरफ अहोम साम्राज्य अब संकट से भी जूझ रहा था।
महीनो से चली हुई जंग की वजह से, अहोम राज्य के हालात ख़राब हो चुके थे, जनता भी त्रस्त थी, ट्रेज़री भी ख़त्म हो चुकी थी, सेना का मनोबल भी गिरा हुआ था, और इसी बीच राजा चक्रध्वज की मृत्यु हो जाती है, और नए राजा बनते हैं उदयआदित्य सिंघा इसलिए जर्नल्स की एक बैठक बुलायी जाती है, और राम सिंह की बताई गयी ट्रीटी पर फिरसे विचार किया जाता है , और लगभग सारे जर्नल्स इस ट्रीटी से राजी भी हो जाते हैं . लेकिन एक जर्नल इससे राजी नहीं होता और वो था अतान बुरहागोहेन, अतान बुरहागोहेन कहता है की ये कहां लिखा है की मुग़ल ट्रीटी के अनुसार हमे दिए गए राज्य पर फिर से हमला नहीं करेंगे, वो कहता है की मुगलों पर ऐतबार नहीं किया जा सकता ये मौकापरस्त लोग हैं। आखिर में अतान कहता है की अहोम के लोगो द्वारा दिए गए बलिदान का क्या और इसके बाद सभी जर्नल्स अतान की बात से एग्री करने लगते हैं, और फिर राजा उदयादित्य सिंघा राम सिंह की शर्तों को ठुकरा देता है,
इधर औरंगजेब भी समझ गया था की अब लड़ाई ब्रह्मपुत्र से ही होगी इसलिए औरंगजेब मुग़ल एडमिरल मुनावर खान और बंगाल के सूबेदार शाहिस्ता खान को कुछ और सेना के साथ राम सिंह के पास भेजता है।
इसी बीच मुग़ल सेना को ये पता चलता है की अहोम सेना के जहाज़ों में एक कमज़ोर कड़ी मिली है, जिसका फ़ायदा उठा कर आगे बढ़ा जा सकता है। इसके बाद राम सिंह अपनी पूरी सेना के साथ निकलता अहोम साम्राज्य को तहस नहस करने, और इतनी बड़ी सेना देख कर अहोम सेना घबरा जाती है। लेकिन इस वख्त तक लाचित बीमार था और ईटा कुली के किले में पड़ा हुआ था, इस समय अहोम की कमान नागा राजा के पास थी, और इस तरफ राम सिंह बोहोत कॉंफिडेंट था। क्यूंकि लाचित अभी बीमार था और राम सिंह धीरे धीरे अपनी सेना के साथ आगे बढ़ रहा था। लेकिन जैसे ही राम सिंह की सेना अंधारुबलि में रचित के हेडक्वाटर्स पहुँचने वाली होतीहै, लाचित उठ खड़ा होता है और अहोम के सारे जर्नल्स और सेना को अटैक करने के लिए कहता है नदी की दोनों तरफ से, जमीं और पानी के बीच वो युद्ध खोल देता है, और बीमार हालत में वो खुद सात जंगी जहाज लेकर युद्ध में उतरता है।
अहोम सेना में लाचित की खबर सुन एक जज्बे की लहर उठ जाती है, और सारी अहोम सेना इस जंग में एक साथ कूद जाती है। और फिर होता है एक विध्वंसक युद्ध, ब्रह्मपुत्र नदी के उस छोटे से दर्रे में अहोम सेना के चौतरफा हमले से मुग़ल सेना कंफ्यूज हो जाती है। और मुगलों का एडमिरल मुनावर खान हुक्का पीते हुए मारा जाता है। उसे एक गोली पीठ पर लगी थी जिस वजह से वो मारा गया, उसी एक दिन में मुगलों के चार हज़ार सैनिक मारे जाते हैं तीन जर्नल्स मारे गए थे और मुगलों को अपनी जान बचा कर वापिस भागना पड़ता है। अहोम सेना उन्हें मनास तक भगा कार आती है। इतनी बड़ी जीत के बाद पूरे अहोम साम्राज्य में ख़ुशी की मानो एक लहर सी फ़ैल गयी थी। ये एक अविश्वसनीय जीत थी और इस जीत का हीरो लाचित बोर्फुकान जिसकी तलवार हेंगडॉन्ग ने मुगलों को मौत के घाट उतारा और वापिस भी भगा दिया, इस ऐतिहासिक जीत ने लाचित बोर्फुकान का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिख दिया। आज भी हर साल 24 नवंबर को Asam में लाचित दिवस मनाया जाता है। और 1999 से हर साल NDA के बेस्ट कैडिट को लाचित बोर्फुकान गोल्ड मेडल से सम्मानित किया जाता है आप खुद ही सोचिये की bettel of saraighat इतना जबरदस्त था की मुग़ल सेना के जेहन चार हज़ार सैनिक मारे गए थे वहीँ अहोम साम्राज्य के सिर्फ 150 सैनिक ही मारे गए थे और ये saari स्ट्रॅटजी थी लाचित बोर्फुकान की जिसे आप स्पार्टन आर्मी के लेओनाइड्स से भी अच्छा जर्नल मान सकते है, ये कहानी थी शूरवीरों की, ये कहानी थी कामाख्यादेवी के सपूतों की, ये कहानी थी योद्धाओं की ये कहानी थी bettel of saraighat की जय हिन्द जय Bharat
Who won the Battle of Saraighat?
Ahom’s victory
Who defeated Mughals 17 times?
Did you know there was one tribe that defeated the Mughals 17 times in battle? Yes, The mighty Ahoms fought and won against the Mughal empire seventeen times! In fact, they were the only dynasty not to fall to the Mughal Empire. Let us learn more about these brave Ahoms.
Did Mughal rule Assam?
As per the treaty the western part of Assam started from Guwahati handed over to the Mughals from the Ahoms. Thus the Mughal retained the west of Barnadi on the bank of Brahmaputra and the east of Asurar Ali (a road name) in the south bank of Brahmaputra river.